अनुप्रिया पटेल के जेठ और आशीष पटेल के भाई मुन्ना सिंह की मारपीट में प्रशासनिक पक्षपात का खुलासा

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चित्रकूट जिले में हाल ही में एक विवाद ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। मुन्ना सिंह पटेल उर्फ अरुण पटेल द्वारा बड़कू शुक्ला उर्फ देवराज की गाड़ी से मजदूरों को उतारने और अपने काम पर ले जाने का मामला सामने आया है। जबकि बड़कू शुक्ला अपने काम के लिए लेबर ले जा रहा था तो रास्ते में मुन्ना सिंह द्वारा अपनी प्रधानी का दबदबा और गुंडई दिखाते हुए उसकी गाड़ी से जबरन मजदूर उतार ली। बड़कू शुक्ला ने जब इसका विरोध किया, तो मुन्ना सिंह ने न केवल गाली-गलौज की बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी।

और यह वही मुन्ना सिंह है जिसके ऊपर पूर्व में मनरेगा में भ्रष्टाचार करने से संबंधित खबरें भी प्रसारित की गई थी और पूर्व में अपनी रंजिश के चलते एक दलित महिला का घर गिरवाने, अपनी चुनावी रंजिश और अपने मन की शांति के लिए एक दलित व्यक्ति की हत्या भी करवाई थी और लेकिन तब भी प्रशासन द्वारा इन खबरों और मामलों को दबाया गया और इस पर कोई कार्रवाई न की गई और अगर देखा जाए तो लोरी ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार का बोलबाला आपको चरम पर देखने को मिलेगा।

लेकिन मुन्ना उर्फ अरुण सिंह द्वारा अपने बचाव हेतु और अपने कर्मकांडों को छुपाने के लिए झूठ प्रपंच तैयार किया गया जिस प्रपंच को साबित करने में राजनीतिक दबाव में आई हुई चित्रकूट पुलिस ने भरपूर मेहनत की।

इस विवाद के चलते मारपीट की घटना भी सामने आई, जिसमें दोनों पक्षों से हमले हुए। हालांकि, मुन्ना सिंह ने अपने भाई आशीष पटेल की राजनीतिक पावर का गलत इस्तेमाल करते हुए बड़कू शुक्ला, राकेश शुक्ला, रमेश शुक्ला और छोटू शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। जबकि राकेश शुक्ला 27 तारीख को कांवड़ लेकर बाबा बैजनाथ जा चुका है, और रमेश शुक्ला और छोटू शुक्ला अपने व्यक्तिगत कामों से बाहर थे।

इस मामले में पुलिस प्रशासन ने बिना उचित जांच के राजनीतिक दबाव में आकर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। ये वहीं चित्रकूट पुलिस हैं जो एक साल में हुई चार चोरियॉं और कई ऐसी घटनाएं को उजागर नहीं कर पाई, लेकिन इस बार राजनीतिक दबाव के चलते तुरंत कार्रवाई की। पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और आरोपियों के घरों पर दबाव बनाया, जिससे साफ होता है कि राजनीतिक दबाव और पक्षपात की भूमिका इस विवाद में महत्वपूर्ण है।

लम्बे समय से चित्रकूट पुलिस प्रशासन पर रिश्वत लेने और रिश्वत के दम पर जबरन समझौते कराने के भी आरोप लग रहे हैं, लेकिन प्रशासन ने अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अब सवाल यह है कि चित्रकूट पुलिस अधीक्षक अरुण सिंह इस केस को सही ढंग से संभालेंगे या राजनीतिक दबाव में आकर नेताओं के पक्ष में निर्णय लेंगे। अरुण सिंह के कार्यकाल के दौरान चित्रकूट में अपराधों की बढ़ती घटनाएं, जैसे कि मारपीट, हत्याएं, चोरी और बलात्कार, ने भी प्रशासन की क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं।

अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि पुलिस अधीक्षक अरुण सिंह किस प्रकार इस जटिल मामले को संभालते हैं और क्या वे राजनीतिक दबाव से बाहर आकर निष्पक्ष न्याय प्रदान कर पाएंगे।

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